उत्तर-प्रदेश

जल संरक्षण के लिए लोक भारती की अनूठी पहल, दो अप्रैल से शुरू होगा जल उत्सव

लखनऊ। सामाजिक संस्था लोक भारती ने देश के पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए अनूठी पहल की है। लोक भारती ने जल बचाने के लिए जागरुकता अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। जल उत्सव माह के रूप में इस अभियान की शुरुआत दो अप्रैल को राजधानी लखनऊ के कुडिया घाट से होगी। अभियान वर्ष प्रतिपदा ( दो अप्रैल ) से आरंभ होकर अक्षय तृतीया ( तीन मई ) तक चलेगा। इस बार में लोक भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री ब्रजेन्द्र पाल सिंह ने बताया कि जल उत्सव माह में देश भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होंगे। विशेष रूप से जल स्रोतों पर कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। इसमें स्वच्छता, वृक्षारोपण, श्रमदान एवं गोष्ठी आदि का आयोजन किया जाएगा।

जल उत्सव माह के बारे में लोक भारती के संगठन मंत्री ब्रजेन्द्र सिंह ने बताया कि जल ही जीवन है, इस तथ्य और सत्य से सभी परिचित हैं। किन्तु जल बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए, इसके लिए जागरूकता की आवश्यकता है। इसलिए जल के संरक्षण के प्रति जागरुकता और सार्थक प्रयास का अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति जल संरक्षण की प्रेरणा देती है। हमारे यहां जल कलश स्थापित करने की परंपरा है। इसके लिए नवगृह बनाकर जल कलश स्थापित करते हैं। जल कलश में पंच पल्लव का महत्व है। इसीलिए जब जल बचेगा, पंच पल्लव बचेंगे तभी सही मायने में जल कलश स्थापित होगा। इसी से प्रेरणा लेकर लोक भारती ने जल उत्सव माह मनाने का निर्णय लिया है।

सिंह ने बताया कि जल उत्सव माह में तीन जल स्रोतों को केन्द्र में रखा गया है। सबसे पहला जल स्रोत कुंआ है, दूसरा तालाब और तीसरा छोटी नदियां। इन्हें केन्द्र में रखकर कार्यक्रम आयोजित होंगे। लोक भारती के नेतृत्व में समाज के प्रमुख लोग अभियान में जुटेंगे। इसके लिए समितियां गठित हो गई हैं। जहां जहां प्राचीन कुएं हैं, उनको पुर्जीवित करना पहला काम है। कुओं की श्रमदान से सफाई की जाएगी। कुओं के आस पास साफ सफाई के बाद वहां वृक्षारोपण किया जाएगा। छोटे छोटे सामूहिक कार्यक्रम भी होंगे। इसी तरह तालाबों को चिन्हित करके उनके भी पुनर्जीवन का प्रयास किया जा रहा है। जहां जहां अभी तालाब हैं, उनके किनारे भी कार्यक्रम होंगे। इसमें भी श्रमदान, सफाई, तालाब से मिट्टी निकालना आदि कार्यक्रम होंगे। छोटी नदियों के किनारे भी कार्यक्रम होंगे। इन नदियों को फिर से पुनर्जीवन देने का प्रयास किया जाएगा। इस तरह से पूरे देश में जल उत्सव माह के अन्तर्गत कार्यक्रम होगे। अलग अलग स्थानों पर समाज के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करेंगे।

संगठन मंत्री ने बताया कि कुआं हमारे संस्कारों का हिस्सा है। कुआं पूजने की पुरानी परंपरा है। इसलिए हर गांव में शहर में कुआं स्थापित रहे। इसके लिए कुओं को फिर से रिचार्ज करने का प्रयास होगा। इसी तरह तालाब भी हमारे संस्कारों तथा जन जीवन से जुड़े रहे हैं। तालाबों का उपयोग पशु-पक्षियों के लिए जल की उपलब्धता के रूप में हमेशा से होता रहा है। इसलिए हमारा प्रयास है कि तालाब फिर से गांव में स्थापित हों, कम से एक तालाब प्रत्येक गांव में रहे। इसे सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित किया जा सकता है। तालाबों के किनारे यदि पंच पल्लव वृक्ष लगाये जाएं तो सुन्दर दृश्य उत्पन्न होगा तथा प्रकृति का भी संरक्षण होगा।

इससे पक्षियों को आहार मिलेगा, उनका भण्डारा फिर से शुरु होगा। उनके आश्रय स्थल विकसित होंगे। साथ ही वातावरण भी शुद्ध और शीतल रहेगा। नदियों का महत्व बताते हुए श्री सिह ने कहा कि नदियां आज सूख रही हैं। इसका कारण उपेक्षा और संरक्षण के प्रति उदासीनता रही है। छोटी नदियां ही बड़ी नदियों का जलपूरक स्रोत हैं। इसलिए पहले इन्हें ही पुनर्जीवित और संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि तीनों जल स्रोतों में वर्षाजल को संग्रहीत करने की क्षमता का विकास करना होगा। हमारा प्रयास है कि वर्षा जल किसी भी रूप में बेकार न जाए। उसे कुएं, तालाब और नदियों में संरक्षित किया जाए।

Lahar Ujala

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