पेटिंग के बीच में ही खुली है मेरी आँखें: डा.स्तुति सिंघल
लखनऊ। कानपुर विश्वविद्यालय से पेटिंग (चित्रकारी) में एमए की पढ़ाई करने वाली डाक्टर स्तुति सिंघल को प्रारम्भिक शिक्षा उनके घर पर ही मिली। डाक्टर स्तुति सिंघल के पिता स्वर्गीय प्रो.सुखवीर सिंघल एक मशहूर चित्रकार थे और उन्होंने अपनी प्रतिभा को छोटी बेटी स्तुति को दे दिया। डाक्टर स्तुति ने हिन्दुस्थान समाचार को दिए एक साक्षत्कार में कहा कि उनकी आंखें पेटिंग के बीच में ही खुली है और बचपन में उनकी रुचि देखते हुए पिता स्वर्गीय प्रो.सुखवीर ने उन्हें पेटिंग से अवगत कराया था।
पिताजी का नाम सुनकर आज भी आते हैं छात्र
चित्रकार डाक्टर स्तुति सिंघल ने कहा कि मेरे पास सिखने के लिए बच्चे आते रहे हैं। मेरे पास एक छात्र आया और उसने दूसरे को मेरे पास भेजा। मेरे पास कभी भी अकादमी या विश्वविद्यालयों से छात्र नहीं भेजे गये। जिन्होंने मेरे बारे में या पिता जी के बारे में सुना, वे मुझ तक पहुंचें। मैं घर पर ही छात्रों को सिखाती रही हूं। पिता जी के वक्त संख्या ज्यादा रहती थी, अब संख्या कम हुई है।
आत्मा की तरह होती है वॉश पेटिंग
डाक्टर स्तुति ने कहा कि वॉश पेटिंग की स्टाइल मेरे पिता जी ने निकाली थी। ऑयल पेटिंग की जिंदगी छोटी होती है और वॉश पेटिंग की जिंदगी बहुत है। जैसे आत्मा होती है, वैसे ही वॉश पेटिंग होती है। इसमें वॉश पेटिंग को पानी में धोते हैं। धोने के कारण इसकी उम्र बढ़ती है। मेरे पिता के बनाये पेटिंग और मेरी स्वयं की वॉश पेटिंग अभी भी दिख रहे हैं और आगे भी दिखेंगे। वॉश पेटिंग को हैंडमेड पेपर पर किया जाता है और अब तो यह खादी भण्डार में भी मिल रहा है।
पिताजी की व्यवस्तता ऐसी थी कि हाथ से भोजन तक नहीं कर पाते
उन्होंने कलाकारों की तबियत के बारे में कहा कि कुछ ऐसा चित्रकारी कर दीजिए कि लोग आकर्षित हो। हमारी चीज किसी के दिल को छू गयी तो पसंद आयेगी। चित्रकार अपने हौसलों को बनाये रखता है और गहरी सोच से अपनी पेटिंग को तैयार करता है। मेरे पिता के वक्त एक दिन में 18 घंटे तक कार्य होते थे। पिता जी स्वयं ही 18 घंटे कार्य करते थे और एक वर्ष की अवधि के बाद एक पेटिंग तैयार की थी। व्यस्तता ऐसी थी कि पिताजी तो अपने हाथ से भोजन तक नहीं करते थे।
नये छात्र क्वालिटी की तुलना में क्वांटिटी पर दे रहे जोर
लखनऊ में चित्रकारी कला के विश्वसनीय चेहरों में डाक्टर स्तुति सिंघल का नाम प्रकाश में आता है। उनके आवास पर रखी हुयी पेटिंग जीवंतता रखती है। उन्होंने आगे कहा कि आजकल तो चित्रकारी से जुड़े नये छात्र अपनी प्रदर्शनी लगाना चाहते हैं। पहले के दौर में प्रदर्शनी कम लगा करती थी। उनके पिता की दिल्ली में 1992 में प्रदर्शनी लगी थी और अब लखनऊ में प्रदर्शनी लग रही है। नये छात्रों के लिए क्वालिटी की तुलना में क्वांटिटी ज्यादा जरुरी हो गयी है। क्वांटिटी में कला का प्रदर्शन और उससे मिलने वाले मूल्य पर ही उनका जोर हो गया है। पहले ऐसा नहीं था।
आज के कलाकार धन और नाम कमाने के चक्कर में फंसे
उन्होंने चित्रकारी की उपयोगिता पर कहा कि चित्रकारी का लक्ष्य बड़ा होना चाहिए। चित्रकारी का लक्ष्य धन से जुड़ गया है। दूसरा लक्ष्य नाम कमाना हो गया है। दोनों के बीच आज कलाकार फंसा हुआ है। पेटिंग कई तरह की बन रही हैं, लेकिन आत्मा से बननी जरुरी है।